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मुंबई — हम सबकी

mumbai

लेखक:सोहम जाधव

मुंबई… ये सिर्फ एक शहर नहीं, ये एक सपना है।
किसी के लिए ज़िंदगी बनाने की जगह, तो किसी के लिए ज़िंदगी बदलने की उम्मीद।

देश के हर कोने से लोग यहाँ आते हैं — कोई बिहार से, कोई बंगाल से, कोई गुजरात से, कोई यूपी से।
कुछ खाली जेब लेकर आते हैं, लेकिन मेहनत से सपनों को पूरा कर के जाते हैं।

यहाँ हर भाषा बोलने वाला मिलेगा, हर धर्म, हर रंग, हर संस्कृति…
लेकिन इन सबको अपना कहने वाली जो जगह है — वो है मुंबई।

पर एक बात हम सबको याद रखनी चाहिए —
मुंबई, महाराष्ट्र में है। इस मिट्टी में शिवाजी महाराज की वीरगाथा है,
यहाँ मराठी भाषा की मिठास है, और मराठी मानुष की मेहनत और स्वाभिमान है।
इसलिए मुंबई में रहने वाले हर इंसान को मराठी भाषा और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।

लेकिन अगर कोई भाषा के नाम पर नफरत फैलाए,
दूसरे राज्यों से आए लोगों को मारे-पीटे या उन्हें भगाने की कोशिश करे —
तो वो भी गलत है।

क्योंकि यहाँ लोकल ट्रेन में सफर करने वाली मां भी मां ही होती है — चाहे वो मराठी बोले या भोजपुरी।
और दिनभर मेहनत करके चाय बेचने वाला बाप भी बाप ही होता है — चाहे वो किसी भी प्रदेश का हो।

मुंबई सबकी है — न मेरी, न तेरी — हमारी।

यहाँ अगर कोई झुग्गी में रहता है तो कोई गगनचुंबी इमारत में —
लेकिन जब बारिश आती है, सब भीगते हैं। जब लोकल बंद होती है, सब परेशान होते हैं।
यही तो है एकता… यही तो है मुंबई।

इसलिए,
हर भाषा का सम्मान करो, लेकिन मराठी से प्रेम करो।
हर इंसान को अपनाओ, लेकिन नफरत को नकार दो।

क्योंकि…
मुंबई एक घर है — और घर में रहने वाले, अपने ही होते हैं।

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